Friday, February 20, 2009

कलम का सिपाही प्रतियोगिता की सम्मानित कविता

ये कौन रोया है दरख्‍तों से लिपट के

''कलम का सिपाही ''कविता प्रतियोगिता के अंतर्गत हम शीर्ष पांच के लिए जो कविता प्रकासित कर रहे है बह है हरकीरत कलसी 'हकी़र' जी की ! जैसा की हम सभी जानते है की यह प्रतियोगिता हमारा पहला प्रयास है इसलिए सब ही यहाँ पर एक दुसरे एक लिए नए है ,इस कविता ने शीर्ष पांच में दूसरा स्थान प्राप्त किया है !

हरकीरत कलसी 'हकी़र' जी आपको हिन्दुस्तान का दर्द परिवार की और से बहुत बहुत बधाई ,हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है !

ये कौन रोया है दरख्‍तों से लिपट के.....

ये कौन रोया है दरख्‍तों से लिपट के

ये किसकी आह से पत्‍ते जले हैं

शमां से उठ रहा धुआँ सा क्‍यूँ है

ये किसकी पलकों से आँसू ढले हैं.....

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ये किसकी कब्र से उडी़ धूल यूँ

ये मजारों पे दीये क्‍यों बुझे पडे़ हैं

हिकारत की निगाह में लिपटे

ये किसकी नज्‍़म के टुकडे़ हवा में उडे़ हैं....

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ये मेंहदी,ये चूडि़याँ,ये सिन्‍दूर क्‍यों है बिखरा

ये बाजारों में क्‍यों इज्‍जत बिकी है

ये किसकी हंसी उठी मक़बरे से

ये चाँद पर फिर क्‍यूँ पैबंद सा लगा है....

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ये कौन रोया है दरख्‍तों से लिपट के

ये किसकी चीखें अखबारों में दबी हैं

ये किसके जिस्‍म़ की तड़प है 'हकी़र'

जो आज पोरों में यूँ दर्‌द उठा है....?!

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--- हरकीरत कलसी 'हकी़र'

4 comments:

  1. हरकीरत जी बहुत सुन्दर रचना,ऐसा लगा जैसे की इस रचना में तूफान को आपने समां दिया हो बहुत उम्दा!
    संजय जी आपको एक बार फिर बधाई !

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  2. आपकी नज्म पड़कर सच बेहद सुखद अहसास हुआ,अच्छा लिखा है बधाई हो आपको!

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  3. हरकीरत जी बहुत बहुत बधाई हो !!

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