
अभिषेक आनंद की सराहनीय कविता-भोली माँ
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कविता और नतीजा का मंच,हिन्दुस्तान का दर्द का प्रयास
कलम का सिपाही कविता प्रतियोगिता के अंतर्गत अब हम जो कविता प्रकाशित करने जा रहे है उसे अपने अल्फाजों और भावनाओं से सजाया है ''फकीर मोहम्मद घोसी जी '' ने !फकीर मोहम्मद घोसी जी विजय नगर, फालना स्टेशन, जिला-पाली (राजस्थान) से बास्ता रखते है ,उनकी रचना में देश प्रेम .भाषा प्रेम देखा गया है ! उनकी आज की रचना भी कुछ ऐसी ही है ''''गर भाषा न होती''!
हम आपको याद दिला दे की शीर्ष पाँच की यह अन्तिम कविता है ,इसके बाद सम्मानित पाँच कविताओं का सफर यही थम जाएगा ! और इसके बाद हम ९ सराहनीय कविताएँ आपके सामने प्रस्तुत करेंगे ! तो फकीर मोहम्मद घोसी जी को शीर्ष पाँच में आने के लिए हमारी ओर से बधाई हम उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते है ,आप से आग्रह है की अपनी राय देकर उनके प्रोत्साहन को ऊँचा करें!
फकीर मोहम्मद घोसी जी की रचना पढने और अपनी राय देने के लिए देखें :-
इस कड़ी में अब हम जो कविता प्रकाशित कर है उसे अपने शब्दों से सजाया है विनोद बिस्सा जी ने ,विनोद जी की इस कविता ने शीर्ष पाँच में तीसरा स्थान प्राप्त किया है ! हम विनोद की को बहुत बहुत बधाई देते है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते है ,आप लोगों से आग्रह है की उनकी इस कविता पर अपनी राय के रूप में समीक्षा भेजें !
विनोद जी की कविता पढने और अपनी राय देने के लिए देखें :-
ये कौन रोया है दरख्तों से लिपट के
''कलम का सिपाही ''कविता प्रतियोगिता के अंतर्गत हम शीर्ष पांच के लिए जो कविता प्रकासित कर रहे है बह है हरकीरत कलसी 'हकी़र' जी की ! जैसा की हम सभी जानते है की यह प्रतियोगिता हमारा पहला प्रयास है इसलिए सब ही यहाँ पर एक दुसरे एक लिए नए है ,इस कविता ने शीर्ष पांच में दूसरा स्थान प्राप्त किया है !
हरकीरत कलसी 'हकी़र' जी आपको हिन्दुस्तान का दर्द परिवार की और से बहुत बहुत बधाई ,हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है !
ये कौन रोया है दरख्तों से लिपट के.....
ये कौन रोया है दरख्तों से लिपट के
ये किसकी आह से पत्ते जले हैं
शमां से उठ रहा धुआँ सा क्यूँ है
ये किसकी पलकों से आँसू ढले हैं.....
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ये किसकी कब्र से उडी़ धूल यूँ
ये मजारों पे दीये क्यों बुझे पडे़ हैं
हिकारत की निगाह में लिपटे
ये किसकी नज़्म के टुकडे़ हवा में उडे़ हैं....
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ये मेंहदी,ये चूडि़याँ,ये सिन्दूर क्यों है बिखरा
ये बाजारों में क्यों इज्जत बिकी है
ये किसकी हंसी उठी मक़बरे से
ये चाँद पर फिर क्यूँ पैबंद सा लगा है....
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ये कौन रोया है दरख्तों से लिपट के
ये किसकी चीखें अखबारों में दबी हैं
ये किसके जिस्म़ की तड़प है 'हकी़र'
जो आज पोरों में यूँ दर्द उठा है....?!
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--- हरकीरत कलसी 'हकी़र'